journey of human life in yoga(योग में मानव जीवन की यात्रा) :
मनुष्य जीवन को यात्रा में त्रुटियां केवल पतन का कारक नहीं होती हैं। कई अवसरों पर त्रुटियां संघर्षों का आधार बनकर संबंधों की नवीन व्याख्या भी करती हैं। याद रहे कि गलती मात्र विसंगति नहीं, बल्कि संभावना भी होती है।
जीवन में जब मनुष्य अविवेकपूर्ण निर्णय लेता है और उनके परिणामस्वरूप उत्पन्न हुई परिस्थितियों से उपकी विपत्ति को धधकती ज्वाला में वह आत्म-विश्लेषण हेतु विवश होता है।
यह आत्तर-विश्लेषण पुनः आत्मसुधार का द्वार खोलता है इतिहास साक्षी है कि महान व्यक्तित्वों ने अपनी गलतियों से सीखकर अपने जीवन को सार्थकता प्रदान की है। अशुद्धि से शुद्धि की ओर बढ़ने की प्रक्रिया ही मनुष्य को अपने समकक्षों के प्रति अधिक संवेदनशील बनाती है, जिससे वह पुनः परस्पर आत्मीयता स्थापित करता है।
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सत्य तक पहुंचने का मार्ग केवल विचारों की धारा में बहने से नहीं प्रशस्त होता, बल्कि सत्य कर्मों के माध्यम से ही समाज उसे स्वीकार करता है। किसी भी व्यक्ति का आदर्शवादी चिंतन तब तक प्रभावहीन रहता है,
जब तक वह उसे अपने आचरण में नहीं उतारता। सत्य वह दीप है, जो स्वयं प्रकाशित होता है और दूसरों को भी प्रकाशमान करता है। सत्य केवल वाणी से नहीं, अपितु कर्मों की निष्कलुषता से ही जनमानस में प्रतिष्ठित होता है। यह सत्य की शक्ति ही है, जो महापुरुषों को अमरत्व प्रदान करती है।
यदि हम गलती को अपराध नाहीं, अपितु अनुभव का साधन समझें और सत्य को केवल प्रवचन का विषय न बनाकर आत्मानुभूति का आलोक बना लें तो सम्माज अधिक समरस और संगठित हो सकता है।
गलती हमें अस्थायी रूप से विघटित कर सकती है, किंतु आत्मचिंतन और सुधार की प्रक्रिया हमें पुनः सथक्त रूप में एकत्रित कर आदर्श बनाने का सेतु बन सकती है। वस्तुतः, साथ का आचरण ही यह अमृततत्व है जीवनको गार्थकता प्रदान करता है।