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Trump News india

Trump  ka News :

यूरोप, पश्चिम एशिया और एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका के मित्र देश डोनाल्ड ट्रंप के युद्धविराम रा कंराने के दोनों प्रयासों से चिंतित हैं। युद्धविराम के माध्यम से शांति स्थापित करने की ट्रंप की उत्कंठा किसी को बुरी नहीं लगती, लेकिन लोगों को इस व्यग्रता की वजह समझ नहीं आती। वह गाजा में प्रधानमंत्री नेतन्याहू को खुली छूट देने को तैयार हैं, ताकि नेतन्याहू अपनी सरकार और खुद को बचाए रखें, फलस्तीनियों और उनके देश के अस्तित्व को संकट में डालकर भी।

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वह यूक्रेन में अपनी 20 प्रतिशत जमीन पर कब्जा करने वाले पुतिन पर युद्धविराम कराना चाहते हैं, बिना हमलों से हुए नुकसान की भरपाई का कोई दबाव डाले। वह भी पुतिन की इस शर्त को मान सकता है कि यूक्रेन को कभी नहीं नाटो में शामिल किया जाएगा।

नाटो की सेना वहां रक्षा कर सकेगी। इसके लिए, रूस को खेलने की पूरी छूट मिलने पर, यूक्रेन की जनता की राय भी लेनी चाहिए।Arab और खाड़ी देशों में ट्रंप की गाजा नीति का विरोध करने का साहस नहीं दिखाई देता। सीरिया में असद सरकार के पतन और हमास और हिजबुल्ला की कमर टूटने पर ईरान भी चुप है।

उसने ट्रंप की शर्तों पर परमाणु समझौता करने का प्रस्ताव ठुकरा दिया है, लेकिन ट्रंप ने यमन के हृतियों की कमर तोड़ने का अभियान चलाकर उस पर भी दबाव डाला है। पुतिन के साथ संबंध बहाल होने के बाद रूस भी ईरान पर दबाव डाल सकता है, लेकिन यूरोपीय देश यूक्रेन को शांति के लिए त्यागने को तैयार नहीं हैं। हंगरी, सर्बिया, स्लोवाकिया और बुल्गारिया जैसे कुछ यूरोपीय देश रूस के साथ शांति चाहते हैं, लेकिन सिर्फ तब तक जब तक उन्हें नाटो की सुरक्षा मिलती है।

रूस की सीमा से लगते फिनलैंड, पोलैंड और पश्चिमी यूरोप के देशों को पुतिन के इरादों पर भरोसा नहीं है। उधर, जर्मनी ने अपने संविधान को यू में बदलकर रक्षा व्यय बढ़ा दिया है।

ब्रिटेन, फ्रांस, शा इटली, स्पेन और स्वीडन सब नाटो बजट में अपना योगदान और रक्षा खर्च बढ़ाने वाले हैं। ब्रिटेन और फ्रांस के परमाणु कवच को यूरोपीय देशों के लिए उपलब्ध कराने पर भी विचार हो रहा है, जिससे अमेरिका पर निर्भरता कम होगी।

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अप्रसार अभियान चलाना चाहते हैं। रूस के साथ संबंधों को पुनःस्थापित करने का उद्देश्य भी परमाणु अप्रसार की प्रक्रिया को फिर से शुरू करना है।

टंप ने कहा कि वह अप्रसार वार्ताओं में चीन, भारत, पाकिस्तान और इजरायल को भी शामिल करना चाहता है। वह युद्धविराम करना चाहते हैं, लेकिन इसका प्रभाव विपरीत होता दिखता है। मुख्य कारण यूक्रेन पर हमला करने का है कि उसके पास परमाणु हथियार नहीं हैं और रूस दुनिया की सबसे बड़ी परमाणु शक्ति है।

1991 में यूक्रेन ने सोवियत संघ से अलग होने के बाद दुनिया में तीसरी सबसे बड़ी परमाणु शक्ति बन गई। 1994 की बुडापेस्ट विज्ञप्ति के अनुसार, वह अपने परमाणु हथियारों को रूस को सौंप दी। बदले में उसे अमेरिका, ब्रिटेन और रूस ने बचाया। 2014 में, सुरक्षा की गारंटी देने वाले रूस ने क्रीमिया प्रायद्वीप पर हमला किया और 2022 में फिर हमला किया, जो आज तक जारी है।

ट्रंप सरकार की देशों के गठबंधन को बचाने की नीतियों के कारण, यूरोपीय देशों को भी अपने परमाणु बलों को मजबूत करने का विचार करना पड़ा है. जापान, दक्षिण कोरिया और सऊदी अरब भी परमाणु होड़ में शामिल होने की सोच रहे हैं। चीन और पाकिस्तान भारत के सामने दोहरी चुनौती हैं। जबकि ट्रम्प चाहता है

चीन और रूस भी परमाणु अप्रसार की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन आपको लगता है कि वह तकनीक और व्यापार युद्ध का लक्ष्य है, तो वह अपना परमाणु कवच क्यों कमजोर करेगा? चीन की परमाणु हथियार बनाने की गति दो दशक के भीतर अमेरिका और रूस से बराबर हो जाएगी।

ट्रंप की व्यापार नीति भारत की सबसे बड़ी चिंता है। उन्हें लगता है कि कई देशों ने अमेरिकी माल पर शुल्क लगाकर उसे अपनी मंडियों में नहीं आने दिया है, जिससे अमेरिकी उद्योगों को चौपट किया गया है।

नतीजतन, वह दो अप्रैल से प्रत्येक देश में प्रतिक्रियाशील टैरिफ लगाने जा रहे हैं। यानी आप अमेरिका की संपत्ति पर जितना टैरिफ लगाएंगे, अमेरिका उतना ही आपकी संपत्ति पर लगाएगा। इसका तत्काल नकारात्मक प्रभाव भारत के दवा और मोटर पार्ट्स उद्योगों पर पड़ेगा, और आगे चलकर भारत के नवोदित सेमीकंडक्टर उद्योग पर भी पड़ सकता है।

भारत अमेरिका के माल पर टैरिफ कम करने या हटाने के अलावा अपने माल के लिए दूसरी मंडियां खोज सकता है, लेकिन यह समय लेगा। ट्रंप के व्यापार युद्ध के कारण अब सभी देशों को अपनी मंडियों को बचाने के लिए मदद की जरूरत होगी।

अर्थशास्त्रियों का मानना है कि संरक्षणवाद की इस लहर से पिछले तीन दशकों में मुक्त व्यापार की प्रगति धीमी हो सकती है। यह सब ऐसे समय हो रहा है, जब भारत को अपने बहुत से उत्पादों को विदेश में बेचकर पैसे कमाने की सख्त जरूरत है, जिसके बिना देश का जीवन स्तर सुधार नहीं किया जा सकता। चार दशक में चीन ने लाखों करोड़ का व्यापार लाभ कमाया है।

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