शरीर की ऊर्जा ( Body Energy) :
निष्क्रियता का अर्थ है किसी भी प्रकार की कोई क्रिया न होना। जहां क्रिया नहीं है, वहां गति नहीं है, परिवर्तन नहीं है, विकास नहीं है। निद्रा की अवस्था में भी कोई विकास नहीं होता। न दुख अनुभव होता है, न सुख और न ही कोई सबक सीखने को मिलता है। हालांकि निद्रा शरीर की खोई हुई ऊर्जा वापस पाने के लिए आवश्यक है।
कुछ प्राणियों को शीत निष्क्रियता में जाना पड़ता है। उस निष्क्रियता में कोई हलचल नहीं होती। उन्हें कठिन समय बीतने की प्रतीक्षा करनी होती है। इसी प्रकार कुछ लोगों के जीवन में ऐसा दुखद समय आता है, जब लगता है कि सब कुछ थम गया है, प्रगति की कोई आस दिखाई नहीं देती।
ऐसे समय को यही समझ लेना चाहिए कि यह उनके जीवन में निष्क्रियता को आत्मसात करने का समय है। एक बीज सुप्तावस्था में रहने के बाद सही ऋतु आने पर अंकुरित होने और विशाल वृक्ष बनने की क्षमता रखता है।
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सीखना एक अनवरत चलने वाली प्रक्रिया है। हम जीवन में कुछ कर रहे हों, तब भी सीखते हैं, कुछ न कर रहे हो तब भी सीखते हैं। कभी-कभी यह प्रत्यक्ष दिखता है। कभी-कभी यह अंतःचेतना में एकत्रित होता रहता है। हमारा मन, मस्तिष्क, एक-एक रोम छिद्र सब कुछ एक उत्कृष्ट सोख्ता है।
जब जीवन में दुख की कालरात्रि आती है तब भले ही लगे कि हम बेसुध हैं, परंतु अंतरतम में हमारा जीव शीत निष्क्रियता में पड़े पशु-पक्षियों की भांति अनुकूल दिवसों की प्रतीक्षा में व्यस्त रहता है। उस समय भी वह अपने आसपास से बहुत कुछ ग्रहण करता रहता है। जिजीविषा प्रकृति की ओर से सभी प्राणियों को मिला सबसे
सुंदर उपहार है। प्रकृति रात्रि लाती है, जिससे हम अपनी समस्त ऊर्जा को बटोर कर पुनः लड़ने के लिए खड़े हो सकें। अतः यदि कभी भी जीवन में ‘लगे कि सब कुछ थम गया है, रुक गया है तो, जानिए कि अभी सृजनात्मक निष्क्रियता की रात्रि है। सक्रिय जीवन का सूरज शीघ्र ही उदित होगा।
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